भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नया दिन / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:26, 12 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |अनुवादक= |संग्रह=द...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
रात भर महकती है
रातरानी
झरते हैं
हरसिंगार
पलते हैं दाने
छीमियों में
सीपी के मन में उमड़ता है
सागर
होता है
जन्म
नए दिन का।