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प्रार्थना की तरह तुम्हारी विदा / दिनेश जुगरान

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आँखों से व्यक्त
कोमल हाँ हो
याकि तुम्हारी
मोन अस्वीकृति
दोनों रहती हैं मेरे साथ
जैसे पत्तियाँ उड़ती हैं हवा के संग
या जैसे
मेरे चेहरे के एक विशेष कोण
और होंठों के अतिरिक्त खिंचाव को
तुम समेट लेती हो
अपने अस्तित्व में

शब्द कई बार खड़े
रह जाते हैं स्तब्ध
नितान्त अकेले
हमारे रिश्तों के बीच

जरूरी नहीं तुम हमेशा
छूकर ही दो मुझे सांत्वना
तुम्हारा तन्मय होकर देखना
कर देता है मुझे आश्वस्त
संगठित

विश्वास के लिए
स्पर्श जरूरी नहीं
प्रार्थना की तरह तुम्हारी विदा
और मौन आलिंगन सा स्वागत
रहता है सदा मेरे साथ