Last modified on 12 मई 2017, at 16:17

मेरे मकान के आगे / दिनेश जुगरान

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:17, 12 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश जुगरान |अनुवादक= |संग्रह=इन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वे लोग कौन हैं
गले में हमेशा जिनके
तख्ती लटकी रहती है
‘हम सफल हैं’
मुझे भी
उस बस्ती के लोगों से मिला दो
जो एक कतार में
चौड़ी सड़कों के दोनों ओर रहते हैं
कौन हैं वे लोग
जिन्हें तीन के अंक के बाद ही
मिल जाती है सीढ़ी
और पहुँचा देती है संतानबे पर

हर मकान होता है उनके लिये ख़ाली
हर दरवाजे़ खुले
रातों रात बदल देते हैं
मकान का पूरा हुलिया
और गेट पर लग जाती है
नाम की
चमकदार पट्टी!

मकान बनाने के सब साधन
मेरे पास भी मौजूद हैं
हाथों में मिट्टी है
सांसां में भरी हैं
सीमेंट और गिट्टी
सीने में पिघलता है लोहा
पेट में पल रही है आग

मुझे नहीं चलना
तुम्हारी चौड़ी सड़कों पर
तुम्हारे इशारे
सिर्फ़ दूर से ही खू़बसूरत लगते हैं
अपनी रची हुई परिभाषाएँ
तुम उनहें ही समझाओ
जिनकी आँखों में
बिजली का उजाला है
और जिस्म में मशीन की ठंडक

ठहरो!
मेरी ओर मत बढ़ना
मेरे मकान के आगे
नाम की पट्टी नहीं