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घर की तरफ़ / दिनेश जुगरान
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मैंने आज ही
अपने गाँव में
बूढ़े होते
मास्टर जी को
उनके आशीर्वादों के
पुलिंदे को
वापस भेज दिया है!
अब उनकी जरूरत नहीं
अपने हाथों में
दस्ताने
और पैरों में मोजे पहन
मैं निकल पड़ा हूँ उस
बीच वाले रास्ते पर!