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मर्दों का वास्तुशास्त्र / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल

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एक ऐसा
घर
जिसमें सिर्फ खिड़कियाँ हों
दरवाजा एक भी नहीं
कितना अजीब है
सोचना
ऐसे घर के बारे में
कौन सोच सकता है
कर सकता है
ऐसी टेढ़ी कल्पना
पुरूष की कल्पना में
क्या आ सकता है कोई घर
ऐसा भी?
पुरूष जो
दरवाजों का शिल्पी है
उसके वास्तुशास्त्र में
खिड़कियाँ अशुभ हैं
अशुभ हैं
हवाओं का बाहर से भीतर आना
हवाओं और हसरतों का जनानखानों
तक पहुँचना अशुभ है
उनके वास्तुशास्त्र में
पीले चेहरे वाली
अंधेरों की अभ्यस्त
रोशनी की इच्छा से अनभिज्ञ
औरतों से खिलता है
उनका घर
उनके वास्तुशास्त्र में स्त्रियों का उल्लेख है
बस इतना कि
हवा,धूप और दुनिया के बारे में
सोचना मना है
उत्कंठित होना
मौसम की नमी ........बादल के रंग
और
सावन की बौछारों से
रोमांचित स्त्रियाँ
अशुभ हैं उनके वास्तुशास्त्र में
स्त्रियाँ
जो जीवित हैं अपने सपनों में
छिप गयी हैं अपनी आँखों की वीरानी के पीछे
सपनों का जीवाश्म कैद है जहाँ
डरते हैं वे
स्त्रियों में बचे रह गए सपनों के जीवाश्म से
पत्थर के नीचे दबी पियराई दूब और मौसम
के संयोग का डर
गवाक्ष विरोधी बनाता है
पुरूष को
दरवाजे पर रोबदार
अपने नाम की पट्टी से रोकता है
डराता है मौसम की गंध को भीतर आने से
खिड़कियाँ कल्पसृष्टि हैं
स्त्रियों की
दरवाजों के विरूद्ध
दरवाजा
जो सिर्फ प्रवेश के लिए बनाया गया है
जिसमें
स्त्री प्रवेश करती है भीतर जीवित
सिर्फ एक बार
निकल सकती है
मृत्यु के बाद ही
आदेश है सनातन यह
हमारे स्मृतिकार का
स्मृतिकार की बंदिशों
की बंदी स्त्रियाँ
आजाद हो रही हैं अपनी कल्पनाओं में
सीख रही हैं खिड़कियों का वास्तुशिल्प
बे दरो दीवार के घर की कामना
ग़ालिब से सीख रही हैं
कपूर की तरह घुल जाना हवा में
अदृश्य हो जाना
निकल जाना बंद दरवाजों के पार
अपनी इच्छा के जादू से
स्त्रियाँ ही सोच सकती हैं
घर के बारे में
आजादी के बारे में
स्मृतिकार के बारे में
सीख रही हैं स्त्रियाँ
घर बनाने की
वास्तुकला
स्मृतिकार की पुरूषों की
इच्छा के विरूद्ध।