भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह कैसा समय है! / अखिलेश्वर पांडेय

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:32, 16 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अखिलेश्वर पांडेय |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अटालिकाओं की छाया ने
हमें बौना बना दिया है
मल्टीप्लेक्स ने छिन ली हमारी मासूमियत
हैरी पॉटर को उड़ान भरते देख
रोमाँचित होते हैं हम
बच्चों को खेलने से रोकते हैं
मशीनों की शोर में
दब गयी है भाषा
बंजर हो गयी है
हमारी भावभूमि
अब उगते नहीं उसपर
सुविचार