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कविता / अखिलेश्वर पांडेय
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कविता नहीं बना सकती किसी दलित को ब्राह्णण
कविता नहीं दिला सकती सूखे का मुआवजा
कविता नहीं बढ़ा सकती खेतों का पैदावार
कविता नहीं रोक सकती बढ़ती बेरोजगारी
कविता नहीं करा सकती किसी बेटी का ब्याह
कविता नहीं मिटा सकती अमीरी-गरीबी का भेद
कवियों!
तुम्हारी कविता
मिट्टी का माधो है...
जो सिर्फ दिखता अच्छा है
अंदर से है खोखला..!
कवियों!
तुम्हारी कविता
खोटा सिक्का है...
जो चल नहीं सकता
इस दुनिया के बाजार में..!