Last modified on 23 मई 2017, at 11:39

दोपहर की रात / अभिमन्यु अनत

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:39, 23 मई 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

यहाँ दोपहर में रात हो गयी
गुलर का फुल खिलकर काफुर हो गया
गिद्ध के डैनों के नीचे
गोरैया की जिन्दगी कानून बन गयी
कैक्ट्स के दाँतों पर खून का दाग आ गया।
पंखुड़ी से फिसल कर
चांदनी अटक गयी है कांटों की नोक पर
ओस की लाल बूँदों पर
काली रात तैरती रह गयी।

उजाले के गल गये तन पर
काला कुत्ता जीभ लपलपाता रहा
गंधलाती रही सूरज की लाश
काली चादर के भीतर
अंधे दुल्हे ने काजल से
भर दी मांग दुल्हन की
यहाँ दोपहर में रात हो गयी
सुहाग-रात बन्द रह गयी
सिदरौटै के भीतर