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रहमलवैग / चित्रा गयादीन

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मय्या बोली
रहमलवैग चली
हम भुलाइगे रही
हुआँ के रहे है
जैसे इगो संस्कार
ई पलवारी घुमाई
मय्या सोचे है
ना जान सके
कब फिर आई
हम लोग सहर गइली
पी एल (बस) पकड़ली
शोफर गुस्साइल
फुटकर ना रहा
दुकान बन्द
कुकु ना मिलल
घाम से धीकत रास्ता पे
धीरे-धीरे मय्या
चलते चलते पेड़वन के पीछे
बिना फेरफी करल घरवा पहिचानिस
परासी में नारियर के बोकला
कुत्ता भौंकल आइल
पतेह घर से निकरल
जे में बोले लगल
माई घई बाजार, अब्बे आइल
दुइ कुरसी आम के नीचे लाइस
कस कस नारियर फोड़े लगल
पानी गिलास में रोकिस
धीरे धीरे हम चिखिला
जोन बात सब कोई पूछे
हौलैंड कैसे लगे है
जौन जवाब सब कोई देवे है
ओमे बहुत ध्यान लगाइके
ना पूछिस
भ्याह कब करिये?