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दोस्ती की चाह / जीत नराइन

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कब फिर कन्धा पर हाथ धरके, अकेले में अपने से सटके
गड्ढ़ा-गड्ढ़ा मेढ़ी पेटी झलासी, पेड-पेड़
उ दोस्ती के याद करके, याद में दोहराई।

बचपन के कै बात तो भूल गैली, कतने ख्याल से भी उतर गाल
भूल ना जा की बचपना बीत गैल, छोड़ के याद के ढंग
करे में सपरे जैसे।

साथ में चलो तो बीच से बाइसिकिल पास हो जाए
अटपट लगे कि देहीं, देहीं से छुवाए
बचाइके हमलोग चलीला अलगीयाए।

बकी अपने से दोस्ती पे किट के दाग फैलल है,
चद्दर पुराना है हीलाके झार दे, विसय दोस्ती के है
ते दाग में लड़कपन के रूप होई।

जौन दोस्ती में लड़कपन के लक्ष्यवाइ तक भी ना,
जौन चीज में बचपना ना,
आकेरे जड़ में करारी और पुनइ में वादा पले है
ओमे अपने में भेंट करे खात जगह खोजे के पड़े है।