भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नाम के एक फूल / जीत नराइन

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:43, 24 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जीत नराइन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatSurina...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम तोहे पानि पे छोड़ देइला
बहके लौट जा इंद्रियन के दररा अलंग
इ तोहे तुरले रहा दिवाना हाथ से
जैसे तु फुलैले और जेमें से तु गढुवैते-गरहेवात गिर गैले।

अब तु पानि पे उतरान बहे है
भि जबकि उ सब से गहिरा गहिरैया में जाइके घुसे है।
मस्त उतराई बहे एक होला प्यार अब,
बक गर रोकावट जबरै से

तब तु एके अपन ढकना पे थामे चहले,
अब तु गहरैयाँ खालि बहिरे से छुवे है सारे के।
बह, बह ना, बैह जा बेबिस्वासी

इ अब ना भेइगा एगो बीज फूल के
कि खालि एक फूल खात अपन अँगना पे।