भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपना देश / देवानंद शिवराज

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:30, 24 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवानंद शिवराज |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपना देश अपना घर
सारे जग मे न्यारा है
माँ का तन ए वतन
तू स्वर्ग से प्यारा है।

मेरी धरती का तन
नित रज तिलक करूँ मैं
आँचल में तेरे बलि हो जाऊँ
सिर तुम्हारा है।

जो करते देश का अपमान
लिया है अपनी माँ का जान।
सेवा निस दिन जो करता
लाल वही माँ का मान।
धन्य है जीवन वही
माँ का चरण जो पखारा है।
सरनामी हिन्दुस्तानी हूँ माँ
जनम जनम हो गोद तेरी माँ
नाम मइया हो सूरीनाम
गिरने दूँगा न तुझे
बड़ा होकर लूँगा था
संकल्प मेरा पृथवी माँ
लक्ष्य यही हमारा है।