मौत से ठन गई / अटल बिहारी वाजपेयी
लेखक: अटल बिहारी वाजपेयी
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ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा जि़न्दगी से बड़ी हो गई।
मौत की उमर् क्या है? दो पल भी नहीं,
जि़न्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूं?
तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।
मौत से बेखबर, जिन्दगी का सफर,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।
बात ऐसी नहीं कि कोई गम ही नहीं,
ददर् अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाकी है कोई गिला।
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आँिधयों में जलाए है बुझते दिए।
आज झकझोरता तेज़ तूफान है,
नाव भँवरों की बाहों में मेहमान है।
पार पाने का कायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफां का, तेवरी तन गई।
मौत से ठन गई।