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मर्त्य भुवनमा ना / कालीकान्त झा ‘बूच’

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उतरल अहँक चरणमा हे दुर्गे,
 मर्त्य भुवनमा ना ..
सिहकल सरस पवनमा हे दुर्गे,
 मर्त्य भुवनमा ना ..
पंछी गाबय पात बजाबय,
मानव मोद मगनमा हे दुर्गे,
 मर्त्य भुवनमा ना ..
नेह द्रवित मन स्वेद श्रवित तन
मुस्की भरल बदनमा हे दुर्गे,
 मर्त्य भुवनमा ना...
उठि सिंहासन दिय' आश्वासन,
सहलहुँ बड़ गंजनमा हे दुर्गे,
 मर्त्य भुवनमा ना...
वसि रजधानी माँ महरानी,
सुत भटकल रनवनमा हे दुर्गे मर्त्य भुवनमा ना...