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सबेरे के अंजोर / राज मोहन

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बहिरे दिन अगोरे है
अंजोर होवे खात
तकिया नरम गोदी बनावे
थकल कान सुस्तावे खात

सपना बुलावे जिनगी के
सपना द्खावे खात
बिचार कविता के भेस में
संतयावल, ठंडा पक्का पे
फूल के तरे गाड़ल
जैसे ईगो असली मुरदा
अन्तिम बिदाई देवे खात

अब दूसर दिन आइ सके है
हम तैयार बाटी
अक्षर के बन्दूक ले के
कल्पना के छाती
सबेर के अंजोर में
छलनी करे खात।