भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तोर दुलार के आँच से / राज मोहन
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:41, 26 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राज मोहन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatSurinamiR...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तोर दुलार के आँच से
चूल्हा बरे है
तोर आँचल के हवा से
आँखि के ज्योति से
अंजोर रहे हैं
तोर कंगन के आवाज से
सबेर जगे हैं
सोच विचार के गोना होइगे
जुड़गइल नाता तोर साथ
देंहि के सब सोना गलगे
तोर देहि के आँच में
चुपचाप बैठल बाटे
झलवा के बगले
कब झूलब हम संगे
कब झूलब हवा में साथे
तोर हाथ के रेखा से
तकदीर हमार बहे।