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हुमायूँ / रामदेव रघुबीर

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(कौवाली)

बादशाह हुमायूँ फर्जी फौलाद,
देखो राखी का मान बढ़ाया।
खुदा के बन्दे ही बादशाह बनते,
बादशाह की नमाजी अदा करके,
दुनिया में मान पाते।
शाही का शान दिखाया।
देखो राखी का मान बढ़ाया।

(कर्णावती)

कर्णावती पर गम पड़ा,
हुमायूँ के पास राखी के साथ खत लिखा।
हुमायूँ ने उसे पढ़ा, कहा
भाई का करूँगा फर्ज अदा।
हाथी घोड़े सैन सजाया।
देखो राखी का मान बढ़ाया।

तभी से चला जोरों से परम्परा भाई-बहन का।
जोहे हर साल राखी के दिन राह बहन भाई का।
आ दुआ दे और दुआ ले बहन का।
ले उपहार बहना का घर भाई आया।
देखो राखी का मान बढ़ाया।

(प्रोहित)

त्रिधागा के डोरों से हाँ,
रक्षा सबके होए।
देव पित्र और अचारी,
इन तीनों को न खोए॥
देव के देन से मैं,
मेरे सब कुछ हैं।
गुण कर्म और स्वभाव,
इनके पावन से उनको पाव॥

माँ के ऋणि-भार,
पिता के किए उपकार।
सेवा से उनको दे प्यार,
होगे पित्री ऋणि से उद्धार॥

गुरु देत हैं ज्ञान,
विद्या, विनिमय-सुख-दान।
पूजे घर, परिवार, समाज-राज,
आवे सारे भूमंडल के काज॥