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मन-ज्ञान / रामदेव रघुबीर

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जा जा यहाँ से भाग जा,
कहीं दूसरे गली में तीर चला।
यहाँ तेरी दाल नहीं गलेगा॥
जो तेरे बस में फँसा,
वो कभी खुशी से नहीं हँसा।
तू मुझे दगा नहीं दे सकेगा॥
कितनो को चढ़ाया, फिर फँसाया
कितनो को बड़ा आदमी बनाकर गिराया।
तू मुझे ऐसे जीते जी नहीं मार पाएगा॥
पंडित, सन्त, महात्मा और योगी,
इन सबको भी चक्कर में डाल बनाता भोगी।
तू मुझसे ऐसा सौदा न कर पाएगा॥
तेरा नाम मन है,
मेरा नाम ज्ञान है।
नादान, तू मुझसे परास्त हो जाएगा॥