भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पहचाना नहीं / सुरजन परोही
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:41, 26 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरजन परोही |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मैं,
छोड़ आया था ‘माँ’
पर छूटी नहीं, तुम
जहाज-भर साथ रही
मैंने,
पहचाना नहीं-
सूरीनाम नदी तट पर
देश में
तुम मेरे साथ हो
अपनी परछाई में
तुम्हें ही देखता हू ‘माँ’