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चोर सिपाही एक्के / नवीन ठाकुर ‘संधि’

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जागलै चोर- चोर- चोर,
खूब होलै चारोॅ तरफेॅ शोर।

कोय जोॅ कहै लेॅ दौड़ी केॅ थाना,
कहियैं चोरैलकै माल खजाना।
टेकी केॅ राखबोॅ घुमायकेॅ बाना,
चोरबा भागै छेलै लेॅकेॅ चोर मोट गहना।
रातोॅ बीती गेलै भोरम भोर,
जागलै... शोर।

पकड़ाय गेलै चोर मोट चोरोॅ रोॅ मेंठ,
गद्गद दरोगा, होय गेलै मालोॅ सें भेंट।
चोरबा सें लेलकै सब्भे गहना समेट,
अरे ! बुत, तोरा छोड़ी देबोॅ होय गेलै हमरा सें सेट।
चोरी रोॅ माल देबै नै लागतौ ‘‘संधि’’ डोर,
जागलै... शोर।