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निशान / नवीन ठाकुर 'संधि'

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एक दिन हम्में करै छेलियै रेलोॅ पर सफर,
खूभेॅ भीड़ छेलै, सवारी छेलै तर ऊपर।

खाड़ोॅ होय में दिक्कत होय छेलै,
बैठेॅ रोॅ तेॅ जगह नै छेलै।
हमरोॅ हाथो में छेलै हिन्दुस्तान पेपर,
हम्में पढ़ै छेलियै देश-विदेशोॅ रोॅ खबर।
सीटोॅ पर एक लड़की बैठलोॅ छेलै सजलोॅ-धजलोॅ,
एक बारगी नजर ओकरा पर पड़लोॅ,
हँसतें हुवें हमरा सें पेपर पढ़ै लेॅ मांगलकोॅ
शायद! वें हमरा आदमी बढ़ियां मानलकै।
पेपर देलियै हम्में बढ़ाय केॅ हाथ,
कुछू देरी में कहलकै,बैठोॅ हमरोॅ साथ।
हम्में पुछलियै की श्रीमति जी होय गेलोॅ छौं तोरोॅ शादी,
सीथी रोॅ सिन्दुर देखाय केॅ, बनी गेलोॅ छी प्रतिभागी।
आपनेॅ रोॅ शादी होय गेलोॅ छौं श्रीमान्,
शादी रोॅ चिन्ह देखाय में ‘‘संधि’’ होलै नकाम।