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ममता / नवीन ठाकुर 'संधि'
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लागै छै, प्रकृति बदली लेलकै रास्ता,
बुझावै छै, तोड़ी देलकै सब्भैं सें वास्ता।
अत्तेॅ दिन सब्भै रोॅ साथें बसल्होॅ,
आय कैन्हेॅ सब्भै सें तोहें रूसल्होॅ?
हम्में नन्हा-मुन्हा खोजै छीं, कहाँ छोॅ छिपलोॅ?
हमरा सिनी केॅ तड़पाय केॅ कहाँ छोॅ सुतलोॅ?
तनियोॅ-सा दिल में बरसावोॅ तोहें ममता
लागै छै, प्रकृति बदली लेलकै रास्ता।
जन-जन केरोॅ बदली गेलै मनसा,
आफत-विपद सें त्रसित छै हंसा,
एकेॅ दोसरा केॅ छिपी के नोचै छै,
कुकर्म करी केॅ अच्छा फोल खोजै छै।