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बरसा गीत / प्रदीप प्रभात
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बरसी गेलै सरंगोॅ से बुंदिया रे,
धरती गेलै हरयाई रे।
हुलसी-हुलसी नाचै करुआ रे बदरिया
थिरकी-थिरकी बिजुली उड़ावै अंचरियारे॥
खेतों खलियानी धरोॅ के पिछुआड़ी,
हरियलै धरती के मरुएैलोॅ साड़ी।
हवा बहै झुलबा पर झुलीझुली रे,
दुल्हिन के सेजें रे सहाई रे।
बरसै बदरिया टिपिर-टिपिर रे,
सावन महिरा खनकी उठै खेतिया रे।
गुंजें लागलै रोपनियां के गीतीयां रे,
बदरिया हवा मारै सिसकारी रे।
नदी, नहर, ताल, तलैया उपलाई रे,
धरती लागै बड़ी सुहागिन रे।
बदरिया के संगे-संग,
बंदा खेलै नुक्का चोरी रे।
चंदा हुलकी मारै नयनमा,
बदरिया गेलै शरमाई रे।