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उमंग / प्रदीप प्रभात
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फुलै कास, बुढ़ाबै बरसा।
ई देखी हरसै छै नरसा॥
धानोॅ रोॅ गम्भड़ निकलै जेन्हैं।
सुगना रोॅ हुलसै छै ओन्हैं।
देखी धानोॅ के रंगत किसना।
मोंच्च पिजाबै हुलसी ऐंगना॥
आबकी साल धानोॅ गुमानोॅ पर।
बेटी बिहाना छै अपना आनोॅ पर॥
घरनी बैठी हाघ चमकाबै।
आपनोॅ रूप गुमानोॅ पर॥