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आबी गेलै वसंत / प्रदीप प्रभात

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पछिया हवा बोली रहलोॅ छै, आबी गेलै बसंत,
कोयल कू-कू करि कहि रहलोॅ आबी गेलै वसंत।
आम मंजरी आबी कहि रहलोॅ छै आबी गेलै बसंत,
महुआ के सुगंध ने कहि रहलोॅ छै आबी गेलै वसंत।
चौपाल पर ठोल रोॅ थाप मॅे कहि रहलोॅ छै आबी गेलै वसंत,
गॉव के होलैया फाग गावी, कहि रहलोॅ छै आबी गेलै वसंत।
फागून रंग-अबीर लै आबी कहि रहतोॅ छै आवी गेलै वसंत,
भौंरा प्रेम रस मेॅ डुबी फुलोॅ सेॅ कहि रहलोॅ छै आवी गेलै वसंत।
पछिया हवा बोली रहलोॅ छै वार-वार आवी गेलै वसंत,
परास के कलि फूली कहि रहलोॅ छै आबी गेलै वसंत।
सरसौं के फूल झूमि-झूमि कहि रहलोॅ है, आवी गेलै वसंत।
आबोॅ मिली सब्भै गावोॅ फााग, आबी गेलै वसंत।