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तस्वीर देखी केॅ / कस्तूरी झा 'कोकिल'

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अंतिम विदाई के तोरोॅ तस्वीर
देखी के होय छैहेॅ! हृदय अधीर
झर-झर गिरैछेॅ आँखीं से लोर
रही-रही दिलॅ के दैछेॅ झकझोर
मनेॅ नैं मानैछैॅ बिन कहने कानै छै।
फटला करेजामें लाजगरान सानै छै।
तोरा छोड़ी केॅ देखतैॅ केॅ हमरेॅ ईहाल?
तन मन में दरद छैॅ अगिया बैताल
जाँती भली देतेॅ केॅ दरद घटैतै केॅ
तेल कूड़ लगाय केॅ सबटा मैटैतै केॅ?
केकरा से कहियै हे दिलरोॅ बात?
सुरूज तीर मारछै काटै छै रात
आबेॅ के कहतै केॅ पानी पिलाबॅ नीं?
गरमी में कहतै केॅ ओढ़ना ओढ़ाबॅ नीं?
घसकेॅ नै पारै छी तकिया लगाबॅ नीं?
के कहतै उनका में लागै छै डोर?
खिड़की लगाबे नीं पड़ेछै झोॅर।
दिन्हों में लागै पिया होय गेलै साँझ
दुलहिन निकलतै जी दै लेली साँझ
दुर्गा जी मेला में रिक्सा पर चलतै केॅ?
पचसैइमा बाँटेॅ लेल आबेॅ मचलतै के?
के कहतै दहो नीं महंगी सर्मइया छै।
दू-दू गो बच्चा छै दुलहिन देख बैइया छै
होली में दही बारा आबेॅ चखैते केॅ?
बेटी पुतोहू के बनाय लेल सिखैते केॅ?
केॅ किनतै नून लेॅ अबीर पिचकारी?
कॅ जयते कीनैलें दैलेली सारी?
एहे सब सोची केॅ नींद ने आबै छै
मौॅन बौराबै छै दिलॅ दुखाबै छै।

23.3.2015 चार से पाँच