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फीके-फीका / कस्तूरी झा 'कोकिल'

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तोरा बिना फीका संसार लागै छै,
तोरा बिना फीका बाजार लागै छै।
रात नैं भाबै छै,
दिन, नैं सुहाबै छै।
साँझ काँटा चुभाबै छै,
की करियै जीवन उधार लागै छै।
तोरा बिना फीका संसार लागै छै,
तोरा बिना फीका बाजार लागै छै।
बाजा सुनी केॅ लागै छै तीरसन
शहनाई सुनी केॅ खौलैलेॅ नीरसन।
नाच गान देखी केॅ तोरे तस्वीर सन
दवा-दारु मिलना, दुसवार, लागै छै।
तोरा बिना फीका संसार लागै छै,
तोरा बिना फीका बाजार लागै छै।
मेला तमाशा सिंह केॅ दहाड़ सन,
होली दीवाली हिमालय पहाड़ सन।
धूमधाम पानी में ग्राह केॅ पछाड़ सन।
चारों तरफ हमरा हाहाकार लागै छै।
तोरा बिना फीका संसार लागै छै,
तोरा बिना फीका बाजार लागै छै।
कहानी सुनाबै लॅे रात केॅ जगैतै केॅ
सम्पादक केॅ डाक मेॅ ठेली केॅ पठैतैकेॅ?
नयका सुनाबैलेॅ रूसाबौसी करतै केॅ?
गीत ग़ज़ल लिखना बेकार लागै छै।
तोरा बिना फीका संसार लागै छै,
तोरा बिना फीका बाजार लागै छै।

30/04/15 अपराह्न सवा दो बजे