भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चौथापन केॅ विधूर वेदना / कस्तूरी झा 'कोकिल'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:52, 13 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कस्तूरी झा 'कोकिल' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चौथापन केॅ विधुर वेदना दुखदायी भैइया।
कोय नैं बूझे दर्द बुजुर्ग के भवसागर में नइैया।
जनम-जनम केॅ जीवन साथी
पंचतत्व में मिललै।
पता ठिकाना नैं छै हुनखॅ
कहाँ में पाती लिखतै
दिल केॅ बात सुनैतै केकरा नैं बाबू नैं भैइया?
कोय नैं बूझे दर्द बुजुर्ग के भवसागर में नइैया।
नवका तें कथील सुनतै?
गुड़लेॅ रामे कहानी।
नैं छै फुरसत नैं छै जरूरत
सब केॅ राह तूफानी।
बेटा पोता केॅ माया में बाँटै खूब रुपैइया।
कोय नैं बूझे दर्द बुजुर्ग के भवसागर में नइैया।
औन पौन में दिन गुजरै छै,
करबट फेरी रात।
तैइयो ममता नैॅ छोडै़ छै?
ई बुझै केॅ बात।
प्राण पखेरु जब उड़तै तॅ होतै भोज गवैइया।
कोय नैं बूझै दर्द बुर्जुग केॅ भवसागर में नैइया।

24/12/15 अपराहन 12.10