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जीते जराबै छै / कस्तूरी झा 'कोकिल'

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परब तेहवार आबै छै
आगे लागबै छै।
की खैयतै, की पीतै?
जीते जराबै छै।
तोरा बिना सच्चे हे।
कुच्छोॅ नैं सोहांबै छै।
ऊछीनों रंग लागै छै,
कुच्छों नैं भाबै छै।
पूआ दहिवारा में
तोरऽ वालाऽ स्वाद कहाँ?
उपरऽ सें हँसी छै,
भीतर आबाद कहाँ?
चारो तरफ हलचल छै।
नचाबै छै मीरा।
शराबऽ केॅ मस्ती में
ठुमकै छै फकीरा।
कलियुग में रही केॅ,
सतयुग रऽ सपना।
केनाँ होतै पूरा?
मुसकिल छै कहना।
आँखी में, मनों में-
तोरे तसवीर छै।
यही लेली कलियुगरऽ
टूटै सब तीर छै।

फागुन पूर्णिमा बुधवार संवत-2062-63

23/03/16 अपराहन तीन बजे