भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

होली दिन हिरदय में / कस्तूरी झा 'कोकिल'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:59, 13 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कस्तूरी झा 'कोकिल' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

होली दिन हिरदय में उठै छै हिलोर?
केकरा संग खेलबै हे होली घनघोर?
ठप-ठप-ठप चूयै छैं
आँखीं से लोर।
रोकतेॅ नैं रुकै छै,
धारा बड़ी जोर।
केकरा संग खेलबै होली घनघोर?
होली दिन हिरदय में उठै छै हिलोर?
रही-रही हिरदय में
मारै छै सांग।
कैहियो नैं पीलियै हे।
पीसो केॅ भांग
तोरा साथें नशा ऐन्हेॅ पुरजोर।
असकल्लोॅ आँखी से ठप-ठप-ठप लोर।
केकरा साथें खेलबै हे! होली घरघोर?
तोरा बिना सूना ई
सुन्दर मकान।
तोरा बिना फीका ई
दहिवारा पकवान।
तोहें घटा घिरली, हम्मेॅ तोरे मोर।
असकल्लोॅ आँखी से ठप-ठप-ठप लोर।
केकरा साथें खेलबै हे! होली घरघोर?
होली दिन हिरदय में उठै छै हिलोर।
ठप-ठप-ठप चूयै छै आँखी से लोर।

होलिकोत्सव 24/03/16 संवंत-2072-73 पूर्वाहन 11.45