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खो गया गाँव / मुकेश नेमा

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मटमैली सी,
उस नदी से,
गाँव की!
उजला सा कुछ
फिर कभी
देखा नहीं,
पाया नहीं

पकड़ी गई थी
मछलियाँ
जो दोस्त संग
स्वाद बेहतर
उनसा कुछ
फिर कभी
देखा नहीं,
पाया नहीं

अचानक सी
बारिशों में
छपछप,छलकते
पोखरों सा
साफ़ मन
फिर कभी
देखा नहीं,
पाया नहीं

कम मिला
ज़्यादा मिला
जो भी मिला
उन दिनों सा
और कुछ
फिर कभी
देखा नहीं,
पाया नहीं