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बनी रहती है बेटियाँ / मुकेश नेमा

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बेटियाँ कभी
नहीं होतीं विदा
देहरी से मायके की
रहती हैं बनी सदैव
आत्मीय मन और
निर्दोष प्रेम के साथ
लिये शुभता
महकते चंदन सी
पूजा घर में
पुरानी किताबों में
छोटी बहन से
साझा कमरे में
चिन्ताओं में माँ की
पिता के गर्वित चेहरे में
सझां आरती सी
प्रीतिकर बेटियाँ
हमेंशा यहीं रहें
बनी रहें
घर में माँ के
घर में अपने
क्योकि बंसत सी
बेटियों का होना
ही है आश्वासन
अगले दिन की
उजली धूप का
इस भरोसे का
कि वे हैं तो
बनी रहेगी
रहने लायक
दुनिया भी