भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निनान / नवीन ठाकुर ‘संधि’
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:55, 22 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन ठाकुर 'संधि' |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आकाश शूनोॅ,
धरती सूखलोॅ।
पानी बिना जीव तरसे-
ऐसेॅ जाय छै समय बितलोॅ
हाथ पेॅ हाथ धरी किसान,
मनेॅ-मन छगुनै छै साँझ-विहान।
वेॅहेॅ सूरज वेॅहेॅ चान,
तय्योॅ कैन्हेॅ होय छै निनान।
"संधि" हमरोॅ बात सुनोॅ
धरती छै परती पड़लोॅ।
कुछ तेॅ करोॅ निदान
आकाश सुन्नोॅ
धरती सुखलोॅ।