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निनान / नवीन ठाकुर ‘संधि’

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 आकाश शूनोॅ,
 धरती सूखलोॅ।

 पानी बिना जीव तरसे-
 ऐसेॅ जाय छै समय बितलोॅ

 हाथ पेॅ हाथ धरी किसान,
 मनेॅ-मन छगुनै छै साँझ-विहान।

 वेॅहेॅ सूरज वेॅहेॅ चान,
 तय्योॅ कैन्हेॅ होय छै निनान।

 "संधि" हमरोॅ बात सुनोॅ
 धरती छै परती पड़लोॅ।
 कुछ तेॅ करोॅ निदान
 आकाश सुन्नोॅ
 धरती सुखलोॅ।