भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दूतीया रोॅ चान / नवीन ठाकुर ‘संधि’
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:02, 22 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन ठाकुर 'संधि' |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सूरज चॉन रोॅ कटिटा होलै मेल,
ओकरैह सें बनी गेलै बड़का खेल।
दिनोॅ में रहै छै दुयोॅ एक्के साथ,
भरी दोॅम करै छै प्रेमोॅ रोॅ बात।
होतैैं आड़ कहाँ बिताय छै रात,
कत्ते बड़ोॅ दै छै चानोॅ केॅ अघात?
सच में अन्हार छेकै सूरज रोॅ जेल,
सूरज ...खेल।
दोषी छै चॉन जें बदलै छै रोज रंग रूप,
यही लेॅ सूरज रहै छै एक दम्हैं चूप।
चॉन रोज कटै छै घटै छै रहै छै मूक,
चानोॅ में बैठी देखोॅ के ताकै छै टुकटुक की गोरी के मुख
धुइयां उड़ैनें, चानोॅ पर जाय छै,
देखी लेॅ "संधि" के रेल।
सूरज ...खेल।