भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ठक / नवीन ठाकुर ‘संधि’

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:20, 22 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन ठाकुर 'संधि' |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक डंगाल पेॅ एक गाछ छेलै महुआ,
ठार पात सें भरलोॅ देखै में लागै झौवा।

ओकरोॅ खोड़हर में रहै छेलै एक तोता,
वैं दिन रात राम-राम रोॅ लगाय छेलै गोता।
जें तें ओकरोॅ आवाजोॅ रोॅ बनेॅ श्रोता,
वै रोज-रोज भजै रोॅ दै न्योता।
मतुर कोय नै लूटै लेॅ पारे राम-राम रोॅ खोवा,

एक दिन एक शिकारी केॅ लागलै मौका बैठै रोॅ,
आय हमरा मौका लागलोॅ छै बझाय आरोॅ ठकै रोॅ।
शुरू करलकै वैं ओकरोॅ जिनगी हहकै रोॅ,
तोता बेचारा फंसलै, मतुर राम-राम शोर करलकै बकै रोॅ।
गजब छोॅ "संधि" तोहें मोन ठकौवा।