Last modified on 22 जून 2017, at 18:35

दुर्ग फाटक / नवीन ठाकुर ‘संधि’

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:35, 22 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन ठाकुर 'संधि' |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दुर्ग खोलोॅ दुर्गा मैया,
करतै दर्शन माय, बाबू, भैया।

कोय चढ़ैतोॅ पाठा बकरू करी दर्शन,
कोय करतौं पूजा-पाठ मन्नें-मन।
सब्भै केॅ दीहोॅ फोॅल एक्के रंग,
तोहरे छेकौं बेटा बेटी भलोॅ बेढंग।
उच्च-नीच नै, सब पेॅ करियोॅ दया,

तोहेॅ विदा होभो मनदिलोॅ सें,
मतुर की सब्भै रोॅ दिलोॅ सें?
तोहरेॅ देलोॅ धोंन की करबोॅ पूजा धनोॅ सें,
पूजा करभौ फूल बेलपात लानी बनोॅ सें।
कष्टोॅ सें "संधि" निवारण करोॅ काया।