Last modified on 25 जून 2017, at 22:26

कुच्छू हमरा फुरते नै छै / कैलाश झा ‘किंकर’

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:26, 25 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश झा ‘किंकर’ |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कुच्छू हमरा फुरते नै छै ।
फुरतै केना जुडते नै छै ।।

मोॅन करै छै सासुर जाय केॅ,
की करियै हम कुरते नै छै ।

पंड़ित जी सेॅ लगन देखैलियै,
निम्मन सनक मुहुरते नै छै ।

केहन लागै छै बसन्त अब,
कोयल कहीं कुहुकते नै छै ।

हीरा-मोती कहाँ छिपल छै,
कन्हौं रतन चकमते नै छै ।

आतंकी संसद तक ऐलै,
जन गज कहीं सुलगते नै छै ।