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कुच्छू हमरा फुरते नै छै / कैलाश झा ‘किंकर’
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कुच्छू हमरा फुरते नै छै ।
फुरतै केना जुडते नै छै ।।
मोॅन करै छै सासुर जाय केॅ,
की करियै हम कुरते नै छै ।
पंड़ित जी सेॅ लगन देखैलियै,
निम्मन सनक मुहुरते नै छै ।
केहन लागै छै बसन्त अब,
कोयल कहीं कुहुकते नै छै ।
हीरा-मोती कहाँ छिपल छै,
कन्हौं रतन चकमते नै छै ।
आतंकी संसद तक ऐलै,
जन गज कहीं सुलगते नै छै ।