Last modified on 26 जून 2017, at 15:48

माँ / नीलेश रघुवंशी

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:48, 26 जून 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

माँ बेसाख़्ता आ जाती है तेरी याद
दिखती है जब कोई औरत।

घबराई हुई-सी प्लेटफॉम पर
हाथों में डलिया लिए

आँचल से ढँके अपना सर
माँ मुझे तेरी याद आ जाती है।

मेरी माँ की तरह
ओ स्त्री!

उम्र के इस पड़ाव पर भी घबराहट है
क्यों, आख़िर क्यों?

क्या पक्षियों का कलरव
झूठमूठ ही बहलाता है हमें?