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माँ जो रूठे / रमेश तैलंग

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चाँदनी का शहर, तारों की हर गली,
माँ की गोदी में हम घूम आए।
नीला-नीला गगन चूम आए।

पंछियों की तरह पंख अपने न थे,
ऊँचे उड़ने के भी कोई सपने न थे,
माँ का आँचल मिला हमको जबसे मगर
हर जलन, हर तपन भूल आए।

दूसरों के लिए सारा संसार था,
पर हमारे लिए माँ का ही प्यार था,
सारे नाते हमारे थे माँ से जुड़े,
माँ जो रूठे तो जग रूठ जाए।