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नदियों में जब धार नहीं / आभा पूर्वे
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नदियों में जब धार नहीं
उतरूंगा मैं पार नहीं।
दुख में आँसू ही न छलके
ऐसा तो संसार नहीं।
अपने को सन्यासी कहता
छोड़ा है घरबार नहीं।
प्यार छिपा लूं भय के मारे
इतना भी लाचार नहीं।
हरदम धोखा खा जाते हो
छाया है, दीवार नहीं।
कितने दिन वह देश चलेगा
जिसकी हो सरकार नहीं।
प्यार जताने वह बैठा है
जिसको आता प्यार नहीं।