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ज़िंदगी में चुनौतियाँ कुछ हों / गिरधारी सिंह गहलोत

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ज़िंदगी में चुनौतियाँ कुछ हों।
हो अमल ऐसी नीतियाँ कुछ हों।

रोशनी दीप से तभी होगी
तैल भी और बत्तियाँ कुछ हों।

बीत सकती नहीं ख़ुशी से फ़क़त
ज़ीस्त में ग़म से कुश्तियाँ कुछ हों।

कैसे बन जाऊं देवता की तरह
आदमी हूँ तो ग़ल्तियाँ कुछ हों।

ढूंढ लूँगा हयात का साहिल
पार करने को कश्तियॉँ कुछ हों।

कैसे पहचानें लोग हैं कैसे
उन पे पैबस्त तख़्तियाँ कुछ हों।

ख़ुदकुशी अब बने न मज़बूरी
इस तरह से भी खेतियाँ कुछ हों।

हो जहाँ प्यार एक ही मज़हब
मुल्क में हर सू बस्तियाँ कुछ हों।

मुफ़लिसों को 'तुरंत' राहत हो
उनके चेहरे पे मस्तियाँ कुछ हों।