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छोड़ो बिस्तर, ननकू भैया! / कन्हैयालाल मत्त

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घर से लेकर एक रुपैया,
चले मचककर ननकू भैया!

चलते-चलते पहुँचे दिल्ली,
टोल जमाती देखी बिल्ली
चूहा लपक रहा था गिल्ली,

मची हुई थी तौबा-दैया,
रुके न पल-भर ननकू भैया!

दिल्ली से अमृतसर आए,
सोलह ऊनी कोट सिलाए,
दिन-भर छोले-कुलचे खाए,

बनकर पूरे खखम-खखैया,
उड़े बिना पर ननकू भैया!

फिर बंबई नगर के अंदर,
बीन बजाते देखे बंदर,
कुछ दढ़ियल, कुछ मूँछ-मुछंदर,

तभी काटने लगा ततैया,
काँपे थर-थर ननकू भैया!

पटियाला भी देखा-भाला,
लाला मिला बनारस वाला,
हुआ अचानक गड़बड़झााला,

नभ में चहकी सोन-चिरैया-
'छोड़ो बिस्तर, ननकू भैया!'