भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सैर-सपाटे के दिन आए! / कन्हैयालाल मत्त

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:39, 28 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैयालाल मत्त |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गरमी की छुट्टियाँ हुईं अब,
सैर-सपाटे के दिन आए!
हुईं परीक्षाएँ भी पूरी,
दूर हुई सारी मजबूरी,
अगले हफ्ते ही चल देंगे,
शिमला, नैनीताल, मसूरी।
जिसे रेल द्वारा जाना हो,
अपनी सीट रिजर्व कराए।
सैर-सपाटे के दिन आए!
तैयारी हो चली सफर की,
सैर करेंगे नगर-नगर की,
सिंड्री, टाटा नगर, भिलाई,
किरकी, ट्रांबे, अमृतसर की।
नाँगल डैम जिसे जाना हो,
पहले ही प्रोग्राम बनाए।
सैर-सपाटे के दिन आए!
चलें आगरा, ताज निहारें,
पंद्रह दिन मंबई गुजारें,
कलकत्ता, मद्रास, लखनऊ,
चलना हो, पुनः विचारें।
जिसे देखना हो संसद को,
वह दिल्ली का टिकट कटाए।
सैर-सपाटे के दिन आए!