बाहर जाने से पहले
कई बार ताले को
खींचकर देखती
रात में बार-बार उठकर
बंद दरवाजों को टटोलती
किसी पड़ोसन के आने पर
सशंकित रहती
वह स्त्री
सो रही है आज ‘बेफिक्र’
सारी चिंताएँ
क्या जीने के लिए होती हैं?
बाहर जाने से पहले
कई बार ताले को
खींचकर देखती
रात में बार-बार उठकर
बंद दरवाजों को टटोलती
किसी पड़ोसन के आने पर
सशंकित रहती
वह स्त्री
सो रही है आज ‘बेफिक्र’
सारी चिंताएँ
क्या जीने के लिए होती हैं?