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जीवन की तलाश में / नीरजा हेमेन्द्र

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बड़े शहर के फ्लैट की
एक छोटी-सी बालकनी में
गिर रही हैं पानी की बूँदें
छम... छम... छम...
गमले में उग आयी चमेली के
नन्हें श्वेत पुश्प लहरा-लहार कर
कर रहे हैं अभिनन्दन सावन का
भीनी-भीनी सुगन्ध से महक उठी है
छोटी-सी बालकनी मेरी
शहर में सावन आ गया है
हाँ! सावन ही तो है
दिख रहे आसमान के एक टुकड़े में
उड़ रहे हैं जामुनी बादल
मकड़जाल से गुँथे फ्लैटों की दीवारों से
आ रहा गंदला-सा, कूड़े कचरे से भरा पानी
सड़कों पर भरने लगा है
शहर के इस सावन से भीगी
मेरी आँखें धुँधली हो उठी हैं
मन उड़ चला है गाँव की ओर...
जहाँ घर... दालान... आँगन...
खुली छत... खुली दिशायें... निर्बाध पगडंडियाँ...
पूरा आसमान भर उठता था
सावन के श्यामल बादलों से
बारिश का प्रथम फुहार से धुल जाते थे
पत्ते... खेत... वृक्ष... सृश्टि...
बारिश में मेरे साथ भीगती गौरैया
मुंडेर पर गीले पंखों को सुखाती
मेरी हथेलियों से चुगती चावल के दाने
उड़ जाती इन्द्रधनुशी आसमान में सैर करने
बागों में पके फालसे, जामुन, आम
मन में बसी है गाँव की मिठास
गाँवों में जीवन है...
गाँवों की हवाओं में जीवन है...
गाँवों के दालानों में जीवन है...
शहर के जनसमुद्र में अकेले घूमता व्यक्ति
जीवन की तलाश में जब शहर में आया था
वह नही जान पाया
अपना जीवन गाँव में छोड़ आया था।