भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मद्धिम उजास / नीरजा हेमेन्द्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:58, 29 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरजा हेमेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज्यों-ज्यों
व्यतीत होती जा रही थी रात
और सो रहा था
पूरा का पूरा शहर
कोहरे की सफेद चादर में
कोहरे की चादर
घनी और घनी होती जा रही थी
इतनी घनी कि स्पश्ट कुछ भी नहीं था
विस्तृत कोहरे में समुद्र में डूबते-उतराते
मछलियों-से वृक्ष और घर
सहसा निकल पड़ते हैं बाहर
आखिर वे कब तक रह सकते हैं
 अँधेरे कोहरे की
घनी चादर के नीचे
सूर्य का मद्धिम उजास
कोहरे को तोड़ने लगा है।