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छंद 8 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज

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(वसंतागम सुन दर्शनार्थ उत्सुक होने का वर्णन)

सुनत सलौनी बात यह, तन-मन सबै भुलाइ।
ऋतु-पति के दरसन हितै, बाढ्यौ उर मैं चाइ॥

भावार्थ: ऐसा प्रिय संवाद सुनकर तन-मन की सुधि भूल महाराज ‘वसंत’ के दर्शन की लालसा बढ़ी।