Last modified on 29 जून 2017, at 18:13

छंद 37 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:13, 29 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज |अनुवादक= |संग्रह=शृंगारलति...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दोहा
(श्रीराधा-माधव की एकरूपता-वर्णन)

एक रूप आनंद-मय, श्री राधा-ब्रजचंद।
करत बिबिध-लीला-ललित, जेहिँ न जान सु्रति-छंद॥

भावार्थ: आनंदमय ‘एक प्राण, दो देह’ रूपात्मक ‘श्रीराधा-माधव’ नाना प्रकार की ऐसी-ऐसी ललित-लीलाएँ करते हैं जिनका पारावार न तो ‘श्रुति’ ही को मिला और न ‘स्मृतियों’ को ही मिला, वे अब तक भी अज्ञात ही रहीं।