भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छंद 62 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:16, 29 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज |अनुवादक= |संग्रह=शृंगारलति...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दोहा
(कविकृत सज्जन प्रशंसा-वर्णन)
लखि-लखि कुमति कुदूषनहिँ, दैहैं सुमति बनाइ।
रहै भलाई भलेन मैं, केबल अंग-सुभाइ॥
भावार्थ: और यह भी समझो कि दूषण को देख ‘पंडित लोग’ लेखक की कुमति की निंदा न कर लेख का भ्रम मान सुधार देते हैं यह उनका सदैव अंग-स्वभाव है।